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कविता

कॉलोनी के लोग

योगेंद्र वर्मा व्योम


अपठनीय हस्ताक्षर जैसे
कॉलोनी के लोग

संबंधों में शंकाओं का
पौधारोपण है
केवल अपने में ही अपना
पूर्ण समर्पण है
एकाकीपन के स्वर जैसे
कॉलोनी के लोग

महानगर की दौड़-धूप में
उलझी खुशहाली
जैसे गमलों में ही सिमटी
जग की हरियाली
गुमसुम ढाई आखर जैसे
कॉलोनी के लोग

ओढ़े हुए मुखों पर अपने
नकली मुस्कानें
यहाँ आधुनिकता की बदलें
पल-पल पहचानें
नहीं मिले संवत्सर जैसे
कॉलोनी के लोग


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